सोचता था जीवन की कीमत कैंसर से बेहतरीन आंकी जा सकती है
सोचता था अपनों को पास रखकर बेहतर और फिर संभाला जा सकता है
सोचता था दर्द को साथ के स्पर्श से मिटाया जा सकता है
सोचता था हर रोग, दवा देकर मिटाया जा सकता है
सोचता था भयानक एक युद्ध ही खौफ, का माहौल दे सकता है
सोचता था दम हर-दम साथ जिया जा सकता है
पर ...
मजबूर है यह फेर समय का जो हर सोच बदल रहा है
मजबूर है यह साथ जो हर साथ से बिछड़ रहा है
मजबूर है यह पल जो हर पल अलग से बीत रहा है
मजबूर है यह शरीर जो इस रोग से रीत रहा है
मजबूर है यह दवा, लड़ाई जो समझौता हर कर रहा है
पर अब बस......
बहुत हुआ जो रोना मजबूर सोच का होना है
हर कीमत इस जीवन को बेहतर से जीना है
खुद को अपने संग संभलना और संभालना है
हर रोग दवा मर्ज नहीं अब यह समझना है
भयानक एक युद्ध, माहौल मस्त बदलना है
दम-दम हर-दम हर-पल साथ जीना है
हर मोड़ अब समय को खुद से ही बदलना है
हां, करने हैं समझौते क्योंकि हार को जीत में बदलना है
कोई लड़ाई बड़ी नहीं बस हिम्मत को जगाना है